कुएं और बगिया का विवाह... 1500 लोग, 200 बाराती, जाने कहां हुई अनोखी शादी


आपने इंसानों की शादी के बारे में सुना होगा, जानवरों की शादी के बारे सुना होगा, लेकिन कभी आपने सुना है कि कुएं (Well) और बगिया (Garden) की शादी कराई गई. 200 लोग कुएं की बारात में शामिल हुए.1500 लोग इस शादी का हिस्सा बने. इनमें कई गांवों के प्रमुख और सरकारी कर्मचारी भी शामिल हुए. अब इस शादी के चर्चे हर जगह हैं.

दरसअल, बहराइच जिले के कैसरगंज क्षेत्र के कड़सर बिटौरा गांव में राठौर परिवार ने अपनी मां की इच्छा के अनुसार गांव में मौजूद कुएं और बगिया की शादी कराई. अखिलेश सिंह और अमरेश बहादुर सिंह राठौर ने अपनी 85 वर्षीय मां किशोरी देवी की इच्छा पर इस अनोखी शादी को भव्य बनाने के लिए लाखों का खर्चा कर दिया. 


प्रिंट कराए गए कुएं और बगिया की शादी के कार्ड



13 मार्च की तारीक कुएं और बगिया की शादी के लिए तय की गई थी. इस अनोखी शादी के लिए बकायदा शादी के कार्ड प्रिंट कराए गए थे. जिस पर हृदयकणिका बगिया संग हृदयांश कुआं लिखाया गया था. राठौर परिवार सहित गांव के अन्य लोगों के नाम इस कार्ड पर मौजूद थे. राठौर परिवार के लोगों के नाम थे पूरे गांव के लोगों के साथ ही आस-पास गांव सहित सरकारी कर्मचारियों को न्यौता भेजा गया था. गांव के लोगों ने इस शादी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. 


बनाई गईं लकड़ी के कुएं और बगिया की प्रतिमा



13 मार्च के दिन कुएं की बारात निकाली गई. कुएं और बगिया की शादी में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आए. दर्जन भर ज्यादा कार से बारात निकाली गई. कार पर बगिया संग कुएं का पोस्टर लगाया गया. 200 लोगों की बारात निकाली गई. कुएं के रूप में लकड़ी की प्रतिमा बनाकर उस पर इंसानी चेहरा बनाया गया और कार में बिठाया गया था. 

बैंड के साथ निकाली गई बारात, जमकर नाचे लोग



इस शादी में बारात भी ऐसी वैसी नही बल्कि बैंड बाजे के साथ निकाली गई, जिसमें गांव के लोगों ने जमकर डांस किया. बारातियों में बाकायदा तहसील कैसरगंज के एसडीएम महेश कैथल समेत ब्लॉक प्रमुख संदीप सिंह विसेन, कैसरगंज क्षेत्र के डॉ. अरविंद सिंह समेत कई ग्राम प्रधान शामिल हुए.


जब बारात गांव की बगिया में पहुंची तो वहां सैकड़ों पुरुष और महिलाओं का जमावड़ा देखते बनता था. तय अनुसार घारातियों में शामिल लोगों ने बारातियों को जलपान कराया, जिसके बाद दूल्हे राजा बने कुएं का पूरे विधि विधान से द्वारपूजन हुआ, जहां महिलाओं ने मंगल गीत गाए.


और हो गई कुएं की बगिया से साथ शादी



इसके बाद गांव के मंदिर के समीप एक यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें मंत्रोच्चार के साथ पुरुष और महिलाओं ने सामूहिक तौर से आहुतियां डालीं. फिर प्रतीक के तौर पर कुएं और बगिया का विधि विधान से विवाह संपन्न हुआ. शादी के अगले दिन (मंगलवार) को विदाई की रस्म अदायगी के पहले भोज का आयोजन किया गया. इस तरह प्रकृति और पर्यावरण को समर्पित एक अनोखी शादी का समापन हुआ.


कई सालों से थी मां की इच्छा, अब हुई पूरी



इस विवाह के आयोजक अमरेश बहादुर सिंह राठौर और अखिलेश सिंह ने बताया कि उनकी मां किशोरी देवी के मन में इच्छा थी की गांव में कुएं-बगिया की शादी कराई जाए. साथ ही कहा कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे हैं. किसी की शादी में बिना बाग में कुआं पूजन किए और बारात ले चलने से पहले और गांव के कुएं का फेरा लगाए बिना किसी दूल्हे को शादी के लिए नहीं भेजा जाता.

दूसरी उनकी माता जी जो की काफी वृद्ध हैं उनकी चार पांच-साल से इच्छा थी की कुएं और बगिया का विवाह करा दिया जाय, सो उनकी इच्छा के मद्देनजर इस शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें 1500 लोगों के बीच आमंत्रण पत्र बांटे गए थे, जिसमें लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और बारात में भी लगभग 200 लोग शामिल हुए.


पुरानी है कुएं और बाग की शादी की परंपरा



वहीं ब्लॉक प्रमुख संदीप सिंह विसेन ने कहा की इस तरह के विवाह की उनके यहां पुरानी परंपरा है ऐसा माना जाता है की गांव में जिस कुएं और बाग की आपस में शादी करा दी जाती है. उसी कुएं का आम शादियों में दूल्हा फेरा लगाकर ही बारात ले जा सकता है. 

वहीं जिस बाग की शादी कराई जाती है उसी बाग में शादियों में महिलाएं तेल औप मेरचुआ पूजन करती हैं. इसलिए उस परंपरा को जीवित रखने के लिए ऐसा कार्यक्रम कराया गया. गांव के लोग बाराती बने थे और कड़सर बिटौरा गांव के लोगों ने घाराती बने थे. 


जैसे बेटे और बेटी शादी होती है वैसा हुआ कार्यक्रम

वहीं इस शानदार आयोजन पर कैसरगंज क्षेत्र के उप जिलाधिकारी महेश कैथल ने भी हिस्सा लेकर सरकारी भागीदारी भी पूरी कर दी. उन्होंने बताया की ग्रामीणों के आमंत्रण पर वह भी इस विवाह में शामिल हुए. जिस तरीके से लोग अपने बेटों और बेटियों की भव्य तरह से शादी करते हैं ऐसा आयोजन यहां देखने को मिला है. यह भारतीय संस्कृति की विशेषता है जहां प्रकृति और पर्यावरण के प्रति मानव में श्रद्धा और विश्वास व्याप्त है, जिसका एक बेहतरीन नजारा कड़सर बिटौरा गांव में दिखाई पड़ा है. 


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