श्राप या देवताओं का प्रकोप? उत्तराखंड के तीन गांव में 300 साल से नहीं मनाई गई होली, जानें वजह



उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में तीन गांव ऐसे हैं जहां पिछले 300 सालों से होली का त्योहार नहीं मनाया गया. होली न मनाने के पीछे की वजह भूम्याल देवता और कुलदेवी द्वारा दिया गया श्राप है. अगर गांव में कोई होली मनाता है तो भूम्याल देवता और देवी नाराज हो जाते हैं. जिस कारण गांव के लोगों और जानवरों की गंभीर बीमारी से मौत हो जाती है.

एक ओर जहां पूरे देश में होली की धूम है. वहीं रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांव ऐसे हैं, जहां आज तक होली कभी नहीं मनाई गई. दो बार इन तीनों गांवों के लोगों ने होली मनाने का प्रयास किया. लेकिन होली मनाते ही तीनों गांवों में गंभीर बीमारी फैल गई और इंसानों के साथ-साथ जानवर भी मारे गये. अब ग्रामीणों ने होली मनाना छोड़ ही दिया है. लगभग तीन सौ से अधिक सालों से इन गांवों के लोगों ने होली नहीं मनाई है.
 
क्वीली, कुरझण और जोंदला नाम के रुद्रप्रयाग जनपद के तीन गांव ऐसे हैं, जहां आज तक कभी होली नहीं मनाई गई. होली न मनाने के पीछे की वजह भूम्याल देवता और कुलदेवी द्वारा दिया गया श्राप है. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के भूम्याल देवता भेलदेव हैं. जबकि कुल देवी मां नंदा और त्रिपुरासुंदरी हैं.

अगर गांव में कोई होली मनाता है तो भूम्याल देवता और देवी नाराज हो जाते हैं. जिस कारण गांव के इंसानों और जानवरों में बीमारी फैल जाती है और लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं. कई वर्षों पहले ग्रामीणों ने होली मनाने का प्रयास किया था, लेकिन तब गांव में हैजा नाम की बीगांव के 35 वर्षीय युवा गणेश त्रिवेदी ने बताया कि आज तक उन्होंने कभी रंगों के त्यौहार होली को नहीं मनाया है. बुर्जग कहते हैं कि होली खेलने पर बीमारी आ जाएगी. अगर कोई होली मनाने का प्रयास करता भी है तो बुजुर्ग मना कर देते हैं. बुजुर्ग ग्रामीण दाताराम पुरोहित का कहना है कि गांवों में होली न मनाने के पीछे ईष्ट देवी का प्रकोप है. एक बार होली मनाई गई थी तो बीमारी पैदा हो गई थी. तब से इस बीमारी के डर के कारण होली नहीं मनाई जाती है.मारी फैल गई थी और कई लोग मर गये थे. तब से ग्रामीणों ने होली मनाना ही छोड़ दिया है.


 

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