बिजुआ खीरी: देश में पाई जाने वाली लगभग 1200 प्रजातियों के पक्षियों में शामिल गिद्धों की संख्या देश में विलुप्ति की कगार पर है। इनके संरक्षण के लिए सरकार की ओर से कई कदम उठाए गए हैं। तेजी से घट रहे इस प्रजाति के पक्षियों का एक झुंड पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के मूसेपुर गांव में दिखाई पड़ रहा है।
कई दशक पहले गिद्धों की बेशुमार तादाद देखने को मिलती थी, लेकिन अब यह विलुप्त हो गए हैं। जानकारों के मुताबिक, जानवरों में इस्तेमाल होने वाली दर्द नाशक दवाई डाइक्लोफिनेक इनकी जान की दुश्मन बन गई है। यह दवा मरे हुए जानवरों के जरिए इन तक पहुंची और उनके मौत का कारण बनती गई। इस दवा का असर गिद्धों की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ा है। साथ ही ऊंचे पेड़ों की घटती संख्या ने इस प्रजाति के लिए और संकट बढ़ा दिया।
गिद्ध को मुर्दा खोर पक्षी माना जाता है, जो मरे हुए जानवरों को झुंड में पहुंचकर खाता है। यह संक्रमण फैलाने से भी रोकता है। पहले घनी आबादी में भी किसी जानवर के मरने या मांस के लोथड़े नजर आने पर इनके झुंड आसमान में मंडराने लगते थे, लेकिन अब यह ढूंढे नहीं मिलते हैं। इनके तेजी से विलुप्त होने पर वन विभाग ने सुध ली और इनके संरक्षण पर ध्यान दिया। वर्ष 2011 में इनकी गणना कराई गई थी, तब सबसे ज्यादा गिद्ध बुंदेलखंड में पाए गए थे। दरअसल, यहां मवेशी ज्यादा हैं और आए दिन जंगलों या बस्तियों में इनकी मौत होती रहती है। शायद यही वजह है की इनकी संख्या यहां ज्यादा नजर आती, लेकिन अब धीरे-धीरे यहां से भी यह पक्षी विलुप्त हो रहे हैं।
रिपोर्ट - नागेंद्र प्रताप शुक्ल
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