इटावा -महेवा ब्लाक के ग्राम टकरूपुर में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के अन्तिम दिवस पर आचार्य सन्तोष तिवारी ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की कथा परीक्षित रामलखन तिवारी एवं माया देवी को सुनाते हुए कहा कि यज्ञ से पहले सभी लोगों को यज्ञ के आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
भगवान श्री कृष्ण ने सभी अतिथियों के चरणों को पखारने का कार्य लिया भीमसेन को सभी अतिथियों के लिए भोजन व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी गई।
सभी अतिथियों के जूठे पत्तलों को भगवान श्री कृष्ण जी ने स्वयं उठाया
आचार्य जी ने सुदामा चरित्र की कथा श्रवण कराते हुए कहा कि श्री कृष्ण और सुदामा जी वालपन में संदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए गये थे तभी गुरुकुल में दोनों लोगों की मित्रता हो गई थी शिक्षा प्राप्ति के बाद सभी छात्र अपने अपने घरों को चले गए। कालान्तर में सुदामा जी अपने परिवार का जीवन निर्वाह करते हुए परमात्मा की भक्ति में लीन रहते हैं।
वह श्री कृष्ण जी के अनन्य भक्त थे लेकिन पूर्व जन्म के श्राप के कारण दीनहीन स्थित में रहने लगे तभी सुदामा जी की धर्म पत्नी सुशीला ने उन्हें श्री कृष्ण से मिलने के लिए जाने के लिए तैयार किया सुदामा जी द्वारकापुरी के लिए चल दिए आगे क्ई दिनों की यात्रा के बाद सुदामा जी द्वारकापुरी पहुंचे तो द्वारपालों ने उनकी दीनहीन दशा को देखकर उन्हें अन्दर नहीं जाने दिया ।
सुदामा जी के द्वारा ज्यादा कहने पर एक द्वारपाल द्वारकाधीश के पास जाकर बोला कि प्रभु कोई दीनहीन ब्राह्मण आपसे मिलना चाहता है और अपना नाम सुदामा बता रहा है और आपको अपना मित्र बता रहा तथा अपना नाम सुदामा बता रहा है।
श्री कृष्ण जी इतना सुनते ही नंगे पैर भागकर आये और अपने मित्र को गले से लगा लिया और दोनों के मिलन को देखकर वहां उपस्थित लोगों की आंखें नम हो गई श्री कृष्ण जी उन्हें महल में ले गए और उनका कई दिनों तक बहुत ही आदर सत्कार किया।
कई दिनों रुकने के बाद सुदामा जी अपने धाम को वापस चल दिए जब अपने नगर को देखा तो सुदामा जी नगर की शोभा देखकर चकित रह गए।
कथा को श्रवण करने वालों में श्रवण तिवारी, राधामोहन , रामकुमार त्रिपाठी, अश्वनी त्रिपाठी,डा चिरायु, वरुण,डा गोबिंद मोहन,सुनीत अनुराग,पवन, मुनीष, शैलेन्द्र, अभिषेक,मनोज, सम्पदा, शोभा, रंजना, वन्दना,सहित सैंकड़ों लोग उपस्थित रहे।
रिपोर्ट संजीव भदोरिया ब्यूरो चीफ इटावा
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